एक मुद्दत से वो वादी मुझको बुला रही है,
लेकिन में बुजदिल जाने से डरता हु,
डर लगता है के शायद बर्दाश्त ना कर पाऊ,
उस वीराने को, उस बिखरे अफसाने को,
जहाँ शिकारे लुका छिपी खेलते थे चिनार के पत्तों के साथ,
आज वहा गुमनामी है,
सेब के बगीचों में बच्चो की हंसी,
ना जाने कहाँ खो सी गयी है,
जलती थी दुनिया जिससे,
आज वो जन्नत ही जल रही है,
गम है तो बस इस बात का है,
के ये आग भी अपनों से लगी है,
लोग बदल रहे हैं, ज़माना बदल रहा है,
मेरा कश्मीर, तेरा कश्मीर, किसका कश्मीर,
अरे कश्मीर ही तो हातों से फिसल रहा है,
लेकिन मानने को तयार कौन है,
अरे क़्त की पथराई आँखों में झाँक करदेखो मियाँ,
आज तो कुदरत ने भी बदलना सीख लिया है,
जन्नत था मेरा घर एक ज़माने में,
आज व हा सुर्ख चेनाब दस्तक देती है!
superlyk !!!!
ReplyDeleteabsolutely fantastic...beauty interrupted
ReplyDeleteLoved it !
ReplyDelete- Rohan
ur words truly explain the pain and angst.
ReplyDeletegreat to see u dwelling into urdu.